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राष्ट्रीय संत सेवा एवं गौ रक्षा कल्याण परिषद

राष्ट्रीय संत सेवा गौ रक्षा कल्याण परिषद की मूल प्रकृति सेवा है। अब इसकी स्थापना के पश्चात् शनैः शनैः अपने समाज के प्रति स्वाभाविक प्रेम तथा आत्मीयता के आधार पर विविध प्रकार के सेवा कार्यों का क्रमिक विकास किया जाना है.

"संसार का सम्बन्ध ‘ऋणानुबन्ध’ है। इस ऋणानुबन्ध से मुक्त होने का उपाय है – सबकी सेवा करना और किसी से कुछ न चाहना।"

"मनुष्य शरीर अपने सुख-भोग के लिये नहीं मिला, प्रत्युत सेवा करने के लिये, दूसरों को सुख देने के लिये मिला है।"

"सेवा परमो धर्मः"

इत्यादि अवधारणाओं के आधार पर परिषद द्वारा यह सम्पूर्ण सेवा कार्य समर्पित कार्यकर्ताओं के द्वारा अत्यल्प संसाधनों के बल पर संचालित किया जाएगा। समूचे भारतवर्ष में सेवा कार्यों का विस्तार किया जाएगा

 

उद्देश्य

परिषद द्वारा सेवा गतिविधियों का संचालन निश्चित उद्देश्य के अंतर्गत किया जाएगा –

  • देश के सभी भू-भागों, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में धर्मांतरण रोकना तथा परावर्तन को प्रोत्साहन देना।

  • सामाजिक समरसता के भाव को परिपुष्ट करना।

  • अशिक्षित, पिछड़े अथवा साधनहीन समाज बांधवों का स्वाभिमान जगाते हुए उन्हें स्वावलम्बी एवं जागरूक बनाना तथा।

  • जिनकी सेवा की जाती है, धीरे-धीरे वे स्वयं सेवाकार्य करने वाले बनें, यह वातावरण बनाना।

  • गौ आधारित खेती से ही राष्ट्र का उत्थान संभव है। इसके लिए केंद्र -प्रदेश में मंत्रालय और जिला स्तर पर आयोग का गठन कर गो आधारित कृषि की ठोस कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए।

  • राष्ट्रीय स्तर पर गौ सेवा आयोग बनना चाहिए !

  • संत समाज को संगठित कर उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कार्य करना!

  • आर्थिक रूप से कमजोर, बीमार व वृद्ध संतो को चिन्हित कर उन्हे सहायता प्रदान करना!

  • समाज में साधु का स्वरूप धारण कर उन्हे ठगने वाले व महान संत परम्परा को कलंकित करने वाले बहरूपियो की जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों को देना।

  • दिल्ली सरकार द्वारा को वेतन की तर्ज पर केंद्र सरकार के माध्यम से संतो के लिए भी इसी प्रकार की योजना बनाए जाने की मांग रखना !